2500 किमी दूर बैठे पिता ने वीडियो कॉल पर बेटे को अंतिम बार देखा; रोजगार की तलाश में अरुणाचल प्रदेश से जयपुर आया था, कोरोना से जान चली गई

जयपुर. देश के दूरदराज राज्यों से रोजगार की तलाश में जयपुर में बहुत से लोग आते हैं। इनमें से कुछ ऐसे भी हैं जो फुटपाथ पर जिंदगी गुजारते हैं। यहां किसी वजह से कोरोना पॉजिटिव हो जाते हैं। इलाज के दौरान उनकी मौत हो जाती है। कोरोना महामारी में सबसे बड़ी मार्मिक संवेदना यह है कि संक्रमित होकर जान गंवाने वाले व्यक्तियों को उनके परिजन अंतिम विदाई तक नहीं दे पाते हैं। देख नहीं पाते हैं। कंधा तक नसीब नहीं हो पाता है।


वहीं, कोरोना संक्रमित व्यक्ति के लावारिस होने पर जयपुर पुलिस के सामने सबसे मुश्किल काम होता है- इन शवों की पहचान करना। उनके परिजन की तलाश कर सूचना देना। जयपुर पुलिस इस चुनौती भरे दायित्व को निभा रही है। यही जानने के लिए भास्कर संवाददाता सोमवार को जयपुर के एसएमएस अस्पताल के मर्च्युरी पहुंचे। यहां मानवीय संवेदनाओं को झकझोर देने वाली अरुणाचल प्रदेश के 20 साल के युवक साजन कुमार की कहानी सामने आई।


आरयूएचएस हॉस्पिटल में कोरोना चौकी के प्रभारी सब इंस्पेक्टर सुंदरलाल ने बताया कि अरुणाचल प्रदेश के एक गांव से साजन कुमार रोजगार की तलाश में जयपुर आया था। वह यहां खानाबदोश जिंदगी जीता रहा। इस बीच संक्रमित हो गया। पिछले दिनों तबियत बिगड़ने पर किसी ने उसे एसएमएस अस्पताल में भर्ती करवाया। वहां उसका कोरोना टेस्ट हुआ। वह 6 जून को पाॅजिटिव आया। तब उसे आरयूएचएस हॉस्पिटल रैफर कर दिया गया।


साजन कुमार अकेला ही आईसीयू वार्ड में भर्ती रहा। 7 जून को उसकी मौत हो गई। ऐसे में प्रताप नगर पुलिस ने शव को एसएमएस अस्पताल के मर्च्युरी में रखवा दिया। 11 जून तक परिजन का पता नहीं चला। आखिरकार मोबाइल फोन से उसकी पहचान हो की। सब इंस्पेक्टर सुंदरलाल ने 12 जून को साजन की मां को फोन किया। उसके पिता जीतेन बीरो से बात की। तब उन्होंने लॉकडाउन की वजह से जयपुर पहुंचने में असमर्थता जताई और बेटे के अंतिम संस्कार की सहमति दी। 


कोरोना संक्रमण की वजह से जान गंवाने वाला साजन कुमार इकलौता बेटा था। उसकी चार बहनें भी हैं। पिता जीतेन ने बताया कि वे लोग जहां रहते हैं, वह अरुणाचल के नामासई जिले में दूरदराज जंगल में स्थित गांव है। वे मजदूरी करके पेट पालते हैं। जीतेन ने सेल्फी वीडियो में कहा- सरजी, मैं अरुणाचल में हूं। थाने के लिए बहुत दूर जाना पड़ता है।


हम लोग गरीब आदमी हैं। कहां कैसे जाएंगे। समझ नहीं आ रहा है। मैं जंगल किनारे रहता हूं। ऐसे में आप सोच समझकर कुछ उधर ही अंतिम संस्कार कर दीजिए और मैं क्या कर सकता हूं। जो होना था, हो गया और हो सके तो डेथ सर्टिफिकेट भेज देना। यहां लॉकडाउन की वजह से गेट पार नहीं होने देते हैं। मैं यहां पत्थर की मजदूरी करता हूं। यहां दो आदमी से ज्यादा घूमने नहीं देते हैं। आप लोग कुछ कर दीजिए सर। मेरी नजर में कोई उपाय नजर नहीं आता है।


आखिरकार, 6 दिन बाद शव की पहचान, 9 दिन बाद अंतिम संस्कार


जीतेन ने वीडियो के अलावा एक लिखित पत्र भी भेजा। इसमें उन्होंने एसआई सुंदरलाल से विधि-विधानपूर्वक उनके बेटे का अंतिम संस्कार करने की मार्मिक अपील की। आखिरकार 9 दिन बाद सोमवार (15 जून) को साजन का आदर्श नगर मोक्षधाम में अंतिम संस्कार किया गया। यहां प्रताप नगर थाने के ही हेडकांस्टेबल किशनलाल ने एसएमएस अस्पताल के विष्णु गुर्जर के साथ मिलकर अंतिम संस्कार की प्रक्रिया पूरी की।


दाह संस्कार से पहले एसएमएस अस्पताल के मर्च्युरी में शव को सैनिटाइज और कवर में पैक करने के बाद आदर्श नगर मोक्षधाम ले जाया गया। यहां श्रीनाथ गौशाला चेरिटेबल ट्रस्ट की तरफ से नारियल, घी की मुहैया करवाया गया। इस बीच चिता जलने के बाद एसआई सुंदरलाल ने 2500 किलोमीटर दूर गांव में मौजूद पिता जीतेन बीरो को मोबाइल वीडियो कॉल के जरिए बेटे के अंतिम दर्शन करवाए तो वह बिलख पड़ा।